भारत की मिट्टी ( Indian Soil)
मिट्टी के जाँच परख के विज्ञान काे मृदा विज्ञान कहते है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार भारत में मिट्टियाँ कई तरह की हाेती है । जाे निम्नवत: है –
जलाेढ़ मिट्टी –
यह मिट्टियाँ नदियाें द्वारा लाई जाती है । इस मिट्टी में पाेटाश की मात्रा ज्यादा हाेती है । लेकिन नाइट्राेजन, फास्फाेरस व ह्ययूमस की कमी हाेती है । इसे भारत की सबसे उपजाऊ मिट्टी माना जाता है । यह मिट्टी भारत के लगभग 22% हिस्से पर मिलती है । भारत का उत्तरी मैदान व तटीय मैदान इसी मिट्टी से बना है । इन हिस्साें में पुराने मिट्टी काे बांगर तथा नई इस मिट्टी काे खादर कहते है ।
यह मिट्टी उर्वरता के दृष्टिकाेण से बहुत उपजाऊ हाेती है । इस मिट्टी में धान , मक्का, गेहूँ, तिलहन, आलू आदि उगायी जाती है ।
काली मिट्टी –

इस मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानाें के टूटने – फूटने से हाेता है । इस मिट्टी में आयरन, चूना , एल्युमिनियम व मैंग्नेशियम की मात्रा ज्यादा हाेती है । इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट व जीवांश की उपस्थित के कारण हाेती है ।
इस मिट्टी काे लाेग रेगुर मिट्टी के नाम से भी पुकारते है । कपास की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपयाेगी हाेती है । यह मिट्टी भारत के राज्य गुजरात , महाराष्ट्र , मध्य – प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र , ओडिसा, कर्नाटक, तमिलनाडु व राजस्थान आदि में पायी जाती है ।
लाल मिट्टी –

इस मिट्टी में जलवायिक परिवर्तन के रवेदार व कायान्तिर शैलाें के विघटन व वियाेजन से हाेता है । इस मिट्टी में सिलिका व आयरन की मात्रा ज्यादा हाेती है ।
लाल मिट्टी का लाल रंग लाैह – ऑक्साइड की माैजदगी के कारण हाेती है । इस मिट्टी में कपास, गेहूँ, दालें व माेटे अनाजाें की कृषि हाे जाती है । चूना का इस्तेमाल कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जाती है ।
भारत में यह मिट्टी आन्ध्र प्रदेश , मध्य – प्रदेश व पश्चिम बंगाल आदि भागाें में पायी जाती है ।
लैटेराइट मिट्टी –
इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता व शुष्मता के उत्पन्न विशिष्ट परिस्थियाें में हाेता है । लैटेराइट मिट्टी चाय, इलायची व काजू की खेती के लिए सर्वाधिक उपयाेगी हाेती है ।